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कॉरोना वायरस इंडिया न्यूज़ टुडे (Corona virus india news today)

COVID-19 शिशु भी हो रहे कॉरोना वायरस से संक्रमित

COVID-19 , Coronavirus: श्रीनगर| जम्मू एवं कश्मीर में एक शिशु सहित कोरोनावायरस संक्रमण के दो और मामले सामने आए हैं, जिसके बाद से राज्य में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 11 हो गई है। जम्मू एवं कश्मीर सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा कि ताजा मामले में सात साल व आठ महीने का बच्चा (दोनों भाई) शामिल हैं। इससे पहले सऊदी से वापस लौटे उनके दादा जांच में पॉजिटिव पाए गए थे। कंसल ने एक ट्वीट में कहा, "श्रीनगर में संक्रमण के दो और मामले। दो भाई (सात साल और आठ माह) कोविड-19 से संक्रमित पाए गए हैं। इससे पहले 24 मार्च को उनके सऊदी अरब से वापस लौटे दादा के कोरोनावायरस से ग्रस्त होने की बात सामने आई थी।" इससे पहले दिन में जम्मू एवं कश्मीर में कोरोनावायरस के चलते पहली मौत का मामला सामने आया। श्रीनगर के एक अस्पताल में कोविड-19 से संक्रमित 65 वर्षीय मरीज ने गुरुवार को उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि व्यक्ति उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे की बीमारी से पीड़ित था, आज (गुरुवार) तड़के उसने दम तोड़ दिया। रोगी एक 'तब्लीगी जमात' (धार्मिक प्रचारक) का हिस्सा था और घाटी में वापस लौटने से पहले वह विदेशियों के साथ संपर्क में रहा था। पिछले दिनों वह 'तब्लीगी जमात' के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने इंडोनेशिया और मलेशिया गया था। इसके बाद वह दिल्ली लौटा। अस्पताल में भर्ती होने से पहले, वह कश्मीर के बारामूला जिले के सोपोर शहर में कुछ जमात में भाग लेने के अलावा स्थानीय डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स के संपर्क में आया था। व्यक्ति के संपर्क में आए कई लोगों में से चार बुधवार को कोविड-19 से संक्रमित पाए गए और बाकी अन्य सेल्फ क्वारंटाइन (खुद से एकांतवास) में चले गए हैं।

भारत में कॉरोना के 694 मामले की पुष्टि, मरने वालों की संख्या इतनी पहुंची

COVID-19: नई दिल्ली| भारत में कोरोनावायरस के संक्रमण के 694 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें से 16 लोगों की मौत हो चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर गुरुवार की शाम उपलब्ध जानकारी के अनुसार, "देश में कोरानावायरस के अब तक 694 मामले की पुष्टि हुई है,जिनमें 647 भारतीय जबकि 47 विदेशी शामिल हैं। देश में कोरोनावायरस से पीड़ित 45 मरीज ठीक हो चुके हैं जबकि 16 लोगों की मौत हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर यह जानकारी गुरुवार की रात आठ बजे अपडेट की गई है। मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, देश में इस समय कोरोनावायरस से संक्रमित 633 सक्रिय मामले हैं। दुनियाभर में जानलेवा कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की तादाद बढ़कर पांच लाख से अधिक हो गई है और 22,000 के अधिक लोग इस महामारी का शिकार बनकर दम तोड़ चुके हैं। दुनियाभर में कोरोना पीड़ित मरीजों जो ठीक हो चुके हैं, उनकी संख्या तकरीबन 1.21 लाख हो चुकी है।

COVID-19 कॉरोना का टीका बनाने के करीब पहुंचे वैज्ञानिक, 69 दवाइयों की हुई पहचान

COVID-19: एक अंतरराष्ट्रीय टीम, जिसमें भारतीय मूल के वैज्ञानिक भी शामिल हैं, ने उन 69 दवाओं और प्रायोगिक यौगिकों की पहचान की है जो COVD-19 के उपचार में प्रभावी हो सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, कुछ दवाओं का उपयोग पहले से ही मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है, और COVID-19 के इलाज के लिए उन्हें फिर से तैयार करना कोरोना के खिलाफ टीके का आविष्कार करने की कोशिश में तेजी ला सकता है। प्री-प्रिंट वेबसाइट बायोरेक्सिव पर प्रकाशित नए अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने 29 कोरोनावायरस जीनों में से 26 की जांच की, जो वायरल प्रोटीन का प्रत्यक्ष उत्पादन करते हैं। टीम ने एक अलग दृष्टिकोण को लेते हुए मेजबान प्रोटीन को लक्षित किया, न कि वायरल प्रोटीन को। 26 का मानव कोशिकाओं का हुआ अध्ययन क्वांटिटेटिव बायोसाइंसेज इंस्टीट्यूट, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को में सहायक निदेशक जीना टी नुग्येन ने बताया कि 29 SARS-CoV-2 वायरल प्रोटीनों में से 26 का मानव कोशिकाओं में अध्ययन किया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे किस मानव प्रोटीन के साथ इंटरेक्ट करते हैं। शाेध में लगभग 332 मानव प्रोटीन को SARS-CoV-2 वायरल प्रोटीन के साथ इंटरेक्ट करते पाया गया। UCSF के शोधकर्ताओं, अद्वैत सुब्रमण्यन, श्रीवत्स वेंकटरमन, और ज्योति बत्रा ने कहा कि ये वो प्रोटीन हैं जो वायरस है, जो 2,1000 से अधिक लोगों को मार चुका है और वैश्विक स्तर पर 4,71,000 से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है। उन्हाेंने कहा कि 69 दवाओं की पहचान की गई, जो इन प्रोटीनों को लक्षित कर सकती हैं, जिनमें से 25 पहले से ही अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा अनुमोदित हैं और इन्हें ऑफ-लेबल इस्तेमाल किया जा सकता है। गुयेन ने कहा कि पहचान की गई दवाओं में वे दवाएं भी शामिल हैं जिन्हें सुरक्षित रूप से टाइप II मधुमेह, कैंसर और उच्च रक्तचाप के इलाज में प्रयोग किया जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि कुछ वायरल प्रोटीन सिर्फ एक मानव प्रोटीन को लक्षित कर रहे थे, जबकि अन्य एक दर्जन मानव सेलुलर प्रोटीन को लक्षित करने में सक्षम हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि आज के समय में सीओवीआईडी -19 को रोकने लिए कोई असरदार दवा नहीं है, और न ही टीका है। दुर्भाग्य से, वैज्ञानिकों को SARS-CoV-2 संक्रमण के आणविक विवरणों का बहुत कम जानकारी है। एंटीवायरल थेरेपी में मिलेगी मदद शोधकर्ताओं के अनुसार, विषाणु संक्रमण की मध्यस्थता करने वाले मेजबान निर्भरता कारकों की पहचान एसएआरएस-सीओवी -2 और अन्य घातक कोरोनावायरस प्रकारों के खिलाफ व्यापक रूप से एंटीवायरल थेरेपी विकसित करने में महत्वपूर्ण दिशा प्रदान कर सकती है।

वैज्ञानिकों ने कहा गरमी बढ़ने पर भारत में रुकेगा कॉरोना वायरस का फैलाव 

coronavirus: COVID 19 नई दिल्ली। टॉप भारतीय माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स को इस बात की आशा है कि 21 दिन के लॉकडाउन के बाद जब गर्मी आएगी, तो पारे में बढ़ोतरी भारत में कोरोनावायरस (कोविड-19) के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। देश के सबसे पुराने साइंटिफिक आर्गेनाइजेशन में से एक एसोसिएशन ऑफ माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स (एएमआई) के प्रमुख और प्रसिद्ध माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रोफेसर जे.एस. विर्दी ने बताया कि मेरी सबसे बड़ी आशा यह है कि अप्रैल के अंत तक तापमान में संभावित बढ़ोतरी निश्चित रूप से इस देश में महामारी की रोकथाम में सहायक होगा। पूरे विश्वभर से प्रतिष्ठित संस्थानों के अध्ययन से खुलासा हुआ है कि कोरोनावायरस के विभिन्न प्रकारों ने 'सर्दी के मौसम में पनपने के लक्षण' दिखाए हैं। आसान शब्दों में समझें तो, कोरोनावायरस दिसंबर और अप्रैल के बीच ज्यादा सक्रिय होता है। कई वायरोलॉजिस्ट ने संकेत दिए हैं कि इस वर्ष जून के अंत तक, कोविड-19 का प्रभाव मौजूदा समय से कम होगा। एएमआई के महासचिव प्रोफेसर प्रत्यूष शुक्ला ने आईएएनएस से कहा, "हां, कुछ वैज्ञानिक जून थ्योरी की बात कर रहे हैं, जो कि निश्चित रूप से तापमान में बढ़ोतरी से जुड़ा हुआ है। मैंने कुछ चीनी सहयोगियों से बात की है और उन्होंने हमें बताया है कि कोविड-19 का रेसिस्टेंस पॉवर उच्च तापमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, "प्राय: सार्स या फ्लू समेत सभी तरह के वायरस का अधिकतम प्रभाव अक्टूबर से मार्च तक होता है। इसके पीछे कारण यह है कि वायरस के प्रसार में तापमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।" एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग केंद्र द्वारा किए गए विस्तृत अध्ययन से पता चला है कि रोगियों के श्वासनली से प्राप्त तीन प्रकार के कोरोनवायरस का सर्दियों के समय पनपने की संभावना ज्यादा है। अध्ययन से खुलासा हुआ है कि वायरस से संक्रमण दिसंबर से अप्रैल तक फैलता है। हालांकि माइक्राबायोलॉजिस्ट का यह भी मानना है कि इस बात के कुछ शुरुआती संकेत मिलने हैं कि कोविड-19 मौसम के साथ बदल भी सकता है। नए वायरस के पैटर्न के अध्ययन से पता चला है कि यह ठंडे और सूखे क्षेत्रों में अधिक संक्रामक है। इस वायरस के दुनियाभर में फैलने की बाबत जे.एस. विर्दी ने कहा, "मैंने माइक्रोबायोलॉजिस्ट के रूप में अपने 50 साल के करियर में इस तरह का वायरस नहीं देखा जो इतनी तेजी से फैलता है। और जिस तेजी से यह फैलता है उससे पता चलता है कि यह हवा में रहता है यानी हवा इसका वाहक है। एक अन्य कारण यह भी है कि इस नए वायरस का जीवनकाल पहले के वायरसों की तुलना में लंबा है। उन्होंने कहा कि इस वायरस का प्रसार इसलिए नहीं रुक पा रहा है क्योंकि यह एयरोसोल (हवा में मौजूद ड्रापलेट) से भी फैलता है। करीब 5 हजार माइक्रोबायोलॉजिस्ट सदस्य वाली वर्ष 1938 में स्थापित एएमआई का मानना है कि सरकार ने जो 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की है यह समुदाय में कोरोना के फैलने से रोकने में प्रभावी भूमिका निभाएगी। लॉकडाउन वायरस के फैलने के खतरनाक चेन को तोड़ेगी। अभी इस वक्त यही सबसे बेहतर किया जा सकता है। एएमआई के प्रेसिडेंट विर्दी ने कहा कि जल्द ही माइक्रोबायोलॉजिस्ट की सर्वोच्च संस्था इस मुद्दे पर चर्चा के लिए जल्द ही वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिये बैठक करेगी।

Coronavirus Upadet: आसुओं से फैलता है कॉरोना जानिए क्या कहते है वैज्ञानिक

coronavirus Update: कोरोनावायरस के बढ़ते संकट के बीच आंसुओं से कोरोना फैलने की खबरों को खारिज करते हुए शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति के आंसुओं से कोरोना संक्रमण नहीं फैलता है। इस बात की पुष्टि ओफ्थैल्मोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में की गई है। अध्ययन के अनुसार निष्कर्षों के लिए, सिंगापुर में नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने COVID-19 से संक्रमित 17 रोगियों से आंसू के नमूने एकत्र किए, ये नमूने मरीजों में लक्षण दिखने से 20 दिन तक लिए गए, जब तक की वे ठीक नहीं हो गए। शोधकर्ताओं ने कहा कि किसी भी मरीज को कंजक्टिवाइटिस नहीं था, जिसे गुलाबी आंख के रूप में भी जाना जाता है, इस वजह से आँसू के माध्यम से वायरस के संचरण का जोखिम कम होता है। वैज्ञानिकों ने रोग के दो सप्ताह के दौरान रोगियों से आँसू के नमूनों में वायरस की उपस्थिति का विश्लेषण किया। शोधकर्ता इवान सीह ने भी इसी अवधि के दौरान नाक और गले के पीछे से भी नमूने लिए। उन्होंने अध्ययन में लिखा है कि न तो वायरल कल्चर और न ही रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) में वायरस का पता चला, जोकि ओकुलर ट्रांसमिशन के जोखिम के कम होने का संकेत है। अध्ययन में कहा गया है कि इन मरीजों के आंसुओं में वायरस नहीं थे, जबकि उनकी नाक और गले में सीओवीआईडी -19 का संक्रमण था। वैज्ञानिकों ने सलाह देते हुए कहा है कि लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी आंखों, साथ ही हाथों और मुंह की रक्षा करें, ताकि उपन्यास कोरोनवायरस जैसे श्वसन वायरस के प्रसार को धीमा किया जा सके। उन्होंने बताया कि जब कोई बीमार व्यक्ति खांसता है या बात करता है, तो वायरस के कण उनके मुंह या नाक से किसी अन्य व्यक्ति के चेहरे तक पहुंच सकते हैं। मुंह और नाक से इनके अंदर जाने की ज्यादा संभावना है, लेकिन ये आंखों से भी श्वसन तंत्र तक पहुंच सकते हैं।

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