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कॉरोना वायरस लेटेस्ट न्यूज़ इंडिया (Corona virus latest news india)

मानव व्यवहार की एक्स्पर्ट ने बताया कॉरोना वायरस के प्रति हमारा व्यवहार हैं असली समस्या

कोविड-19 जैसे संक्रामक रोगों
की रोकथााम और उपचार हमारे व्यक्तिगत निर्णय पर अत्यधिक निर्भर हैं। क्योंकि व्यक्ति हमेशा तर्कसंगत व्यवहार नहीं करता। महामारी के प्रकोप के समय वह अपने सामान्य व्यवहार से इतर घबराहट से भरे होते हैं जो महामारी की कथित लागत को संतुलित करने का काम करते हैं। ऐसे प्रकोपों के समय घबराहट और चिंता के कारण हमारी व्यक्तिगत निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप हम समझ ही नहीं पाते कि हमें असल में इस बीमारी से लडऩे के लिए कैसा व्यवहार करना चाहिए।
बैग्गियों का कहना है कि महामारी की शक्ल में कोरोना वायरस जैसे संक्रामक रोगों ने दशकों से अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ब्लैक प्लेग या ब्लैक डेथ, प्लेग, स्पेनिश फ्लू, सार्स, इबोला वायरस, एन्थ्रेक्स, मार्स, सार्स और अब कोविड-19 जैसी संक्रामक और जानलेवा बीमारियों ने कई दशकों तक समाज और अर्थव्यवस्था को आकार दिया है। इससे उत्पन्न घबराहट का एक ताजा उदाहरण हांगकांग और सिंगापुर में 'टॉयलेट पेपर पैनिक' के रूप में भी देख सकते हैं। दरअसल महामारी का जोखिम प्रबंधन से जुड़े स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपाय करने की जरुरत होती है। लेकिन लोगों में डर से यह जटिल काम और मुश्किल हो जाता है। नतीजा रोज संक्रमण की चपेट में आने से रोगियों की संख्या में इजाफा होने लगता है।

मानव व्यवहार की एक्सपर्ट ने बताया कोरोना वायरस के प्रति हमारा व्यवहार है

असली समस्या संतुलित व्यवहार करना जरूरी व्यवहार अंतर्दृष्टि यानी 'बिहेवियरल इनसाइट' व्यवहार विज्ञान से जुड़े विभिन्न विषयों व्यवहार अर्थशास्त्र, सामाजिक और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान एवं मानव विज्ञान (एन्थ्रोलॉजी) का एक संग्रह है जिसे एक उपकरण के रूप में महामारी के समय नागरिकों के व्यवहार को संतुलित करने में उपयोग किया जा सकता है। इन सभी विषयों को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल कर सार्वजनिक नीति बनाने और लोगों को सूचित करने के परिष्कृत नेटवर्क के रूप में उपयोग किया जा सकता है। कोरोना वायरस के चलते एन-95 मास्क पड़े कम, 30 फीसदी की वैश्विक वृद्धि हालांकि गैर-संचारी रोगों की बजाय संक्रामक रोग अपवाद हैं क्योंकि महामारी के समय व्यक्तिगत निर्णय लेना अब स्व-निहित या व्यक्तिगत नहीं रह गया है। बल्कि यह एक सामुदायिक मामला बन जाता है। यदि आप संक्रमित हैं और दूसरे को इसके संपर्क में आने से नहीं रोक पाते या स्वस्थ होने के बावजूद अपनी रक्षा नहीं करते हैं तो नैतिक रूप से आप भी इस महामारी के प्रकोप बनने के लिए जिम्मेदार हैं। दूसरे शब्दों मेंए जब संक्रमण को नियंत्रण में करना हो तो न केवल स्वयं के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए हमारा व्यक्तिगत व्यवहार महत्वपूर्ण होता है। इससे किसी भी संक्रमित या फैलने वाले रोग प्रबंधन करना आसान होगा।
मानव व्यवहार की एक्सपर्ट ने बताया कोरोना वायरस के प्रति हमारा व्यवहार है असली समस्या 'अखिलीस हील' भी जिम्मेदार महामारी के समय जब स्वास्थ्य अधिकारी और प्रशासन इस पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रहे होते हैं तो मानव व्यवहार का सबसे कमजोर पक्ष सामने आ जाता है। यूनानी लोकोक्ति में अखिलीस हील उस कमजोर हिस्से के लिए उपयोग किया जाता है जो हमारे पतन या मृत्यु का कारण बनता है। डर के मारे हम लोग घरों से बाहर निकलना, मिलजना-जुलना बंद कर देते हैं। कोरोना वायरस के समय भी सार्वजनिक रूप से शहरों में 'लॉक डाउन' इसका ठोस उदाहरण हैं। व्यवहार विशेषज्ञ कहते हैं कि जोखिम को कम न आंके लेकिन इसका प्रसार ऐसे न हो कि लोगों में भय पैदा हो। aa_2.png क्योंकि मौत के आंकड़ों, संक्रमित लोगों की रोज बढ़ती संख्या और दुर्लभ या महामारी जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता है तो लोगों और स्वास्थ्य विभाग के बीच संवादहीन व्याख्याएं उत्पन्न होती हैं जो भ्रम और डर को बढ़ाने का काम करती हैं। तात्कालिक अनुमान और सुलभ जानकारी पर भरोसा करने की हमारी प्रवृत्ति भी हमारे दिमाग के एक मानसिक शार्टकट की तरह है जो किसी घटना की आशंका से अत्यधिक भ्रामक हो सकता है।

कॉरोना वायरस के चलते डिजिटल निर्भरता में दो गुना तक वृद्धि

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के आह्वाहन पर 22 मार्च को पूरे देश में जनता कफ्यू का असर देखने को मिला। लोग अपने घरों में ही रहे। शाम 5 बजे कोरोना से निपटने के लि तैनात लोगों के लिए थाली और ताली बजाकर हौसला अफजाई की। पूरा दिन घर में रहने वाले लोगों ने टीवी और परिवार के सदस्यों केे साथ समय बिताकर खुद को व्यस्त रखा। मनोरंजन और समय बिताने का एक बड़ा जरिया ऑनलाइन और डिजिटल प्लेटफॉर्म भी रहे।

डिजिटल निर्भयता में दो गुना तक वृद्धि

आम दिनों की तुलना में कोरोना वायरस के दौरान भरारत में इंटरनेट और डिजिटल संबंधी उपयोग में दोगुना वृद्धि हुई है। खासकर कोरोना से जुड़ी जानकारी, विकल्प, उपाय, नई जानकारियां, देश-विदेश का हाल, अपनों की खैरियत लेने और ऑफिस संबंधी जरूरी कामों के लिए भी इंटरनेट सबसे प्राथमिक साधन बना रहा। आइए एक नजर डालें बीते 22 दिनों में ऑनलाइन और डिजिटल डिपेडेेंंसी के बारे में। 01. 100 गुना वृद्धि हुई है यू-ट्यूब की यूजर संख्या मे 15 मार्च तक गूगल ट्रेंड्स के अनुसार। शुरुआती रुझान में लोग वीडियो गेम, ऑनला्रइन एप्लीकेशंस और सोशल मीडिया पर खुद को व्यस्त रख रहे हैं। इस दौरान हॉटस्टार और नेटफ्लिक्स की व्यूअरशिप में गिरावट आई है।
कोरोना वायरस के चलते डिजिटल निर्भरता में दोगुना तक वृद्धि 04. 1.5 से 2.5 गुना वृद्धि हुई है ऑनलाइन दवाओं और घर की जरुरत के सामान की खरीदारी में क्योंकि कोरोना के चलते मार्केट में चीजों की कमी हो गई है। इसमें ई-फार्मेसी और मेडिसिन डिलीवरी के लिए सबसे ज्यादा सर्च किया गया। 05. 100 फीसदी की वृद्धि हुई है ग्रॉफर्स और बिग बास्केट जैसी ई-ग्रोसरी सााइट्स की बिक्री में। 06. 71 फीसदी भारतीयों ने माना की इस समय ई-कॉमर्स और ऑनलाइन डिलीवरी पोर्टल्स जीवनरेखा का काम कर रहे हैं। अकेले यूएई में ही 70 से 100 फीसदी की वृद्धि हुई है इसमें। 07. 40 फीसदी की वृद्धि हुई है फरवरी से मार्च के बीच घर में व्यायाम करने के लिए ऑनलाइन फिटनेस ट्रेनिंग में, जबकि 15 फीसदी की वृद्धि हुई है जिम उपकरणों की खरीदारी में। 08. 60 फीसदी की वृद्धि हुई है ऑनलाइन एज्यूकेशन टूल्स और प्लेटफॉर्म में। 800 करोड़ की भारतीय ऑनलाइन एज्यूकेशन स्टार्टअप बाइजूज की ऑनलाइन सेवाएं लेने वालों की संख्या में भी 60 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। स्कूल और कॉललेज बंद होने एवं परीक्षाओं के स्थगित होने से इसमें अभी और इजाफा हो सकता है। कोरोना वायरस के चलते डिजिटल निर्भरता में दोगुना तक वृद्धि हुई हैं।

कॉरोना वायरस के चलते एन- 95 मास्क पड़े कम, 30 फ़ीसदी की वैश्विक वृद्धि

नोवेल कोरोना वायरस में संक्रमण रोकने में सबसे कारगर मास्क एन-95 महामारी के इस दौर में मांग के दबाव और production की कमी से जूझ रहा है।
उसे देखते हुए अमरीकी कंपनी ३एम ने हाल ही इस मास्क के लिए बड़े आ्रॅर्डर तारी किए हैं। 3एम कंपनी एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय समूह है जो उद्योग, श्रमिक सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और उपभोक्ता संबंधी वस्तुओं के क्षेत्र में काम करती है। ३एम ने कहा कि अगले साल तक मास्क का वैश्विक उत्पादन दोगुना हो जाएगा। कंपनी ने हाल ही मास्क उत्पादन में 30 फसदी की वैश्विक वृद्धि दर्ज की है। अमरीका की दक्षिण डकोटा और नेब्रास्का में कंपनी की यूनिट एक महीने में 3.5 करोड़ (35 मिलियन) एन-95 मास्क का उत्पादन कर रही हैं ताकि पूर्ति की जा सके। 3एम के अध्यक्ष और सीईओ माइक रोमन ने बताया कि अब वे मास्क का 90 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों के लिए बना रहे हैं। जबकि बाकी 10 फीसदी उन औद्योगिक श्रमिकों के पास जाएंगे जो ऊर्जा, खाद्य और फार्मास्यूटिकल्स जैसे अन्य क्षेत्रों में काम करते हैं। अमरीकी चिकित्साकर्मियों के लिए एन-95 मास्क की कमी, कंपनी ने युद्धस्तर पर उत्पादन कर न्यूयॉर्क और सिएटल के लिए 5 लाख मास्क भेजे हैं। कोरोना वायरस के चलते एन-95 मास्क पड़े कम, 30 फीसदी की वैश्विक वृद्धि औद्योगिक उपयोग के लिए थे हालांकि एन 95 मास्क औद्योगिक उपयोग के लिए डिज़ाइन किए गए थे लेकिन महामारी में इनकी उपयोगिता को देखते हुए हाल ही व्यवसायिक उपयोग संबंधी कानून में परिवर्तन कर एन 95 मास्क को रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के लिए भी स्वीकृत कर दिए गए हैं। यह मास्क कम से कम 95 फीसदी हवा में मौजूद कणों को फिल्टर करते है।
कोरोना वायरस के चलते एन-95 मास्क पड़े कम, 30 फीसदी की वैश्विक वृद्धि कीमतें छू रहीं आसमान जो मास्क वे अभी तक 85 सेंट में मिल रहा था कोरोना वायरस के महामारी बनने के बाद 7 डॉलर का बिक रहा है। रोमन ने कहा कि मास्क की कालाबाजारी रोकने और कीमतों में वृद्धि न होने देने के लिए वे अब खरीदने वाली कंपनियों से 1000 मास्क का ही अनुबंध कर रहे हैं। ३एम कंपनी यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका में भी मास्क बनाती है। कंपनी के सीईओ रोमन ने कहा कि वे अभी विशेष रूप से कोरोना वायरस को केन्द्र में रखकर मास्क तैयार कर रहे हैं। कोरोना वायरस के चलते एन-95 मास्क पड़े कम, 30 फीसदी की वैश्विक वृद्धि हुई हैं।

कॉरोना वायरस संचरण को धीमा कर सकता गर्म तापमान 

गर्म क्षेत्राें कम रहा COVID-19 शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्तमान में 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक औसत तापमान में गर्मी का सामना कर रहे दक्षिणी गोलार्ध के देशों में भी कोरोना संक्रमण के मामले दर्ज हुए है। लेकिन ये विश्वस्तर पर फैल रहे संक्रमण का 6 प्रतिशत से कम हिस्सा है। बुखारी ने कहा कि जहां भी तापमान ठंडा था, वहां मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है, आप यूरोप को देख सकते हैं, भले ही वह स्वास्थ्य देखभाल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ में से एक है। तापमान पर कोरोनावायरस के प्रकोप की निर्भरता संयुक्त राज्य अमेरिका में देखी जा सकती है। एरिज़ोना, फ्लोरिडा और टेक्सास जैसे दक्षिणी राज्यों में वाशिंगटन, न्यूयॉर्क और कोलोराडो जैसे अपेक्षाकृत कम तापमान वाले राज्यों की तुलना में धीमी वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि गर्म तापमान इस वायरस को कम प्रभावी बना सकता है, लेकिन कम प्रभावी संचरण का मतलब यह नहीं है कि कोई संचरण नहीं है। हमें उसमें भी सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी।

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